
जीवन के एक ऐसे पड़ाव में जब लोग को उनके बचपन की याद आती है तो सबसे पहले छवि उनके बाल्यकाल की बनकर उभरती है। जिसे याद करके सभी के चेहरे पे एक नटखट हंसी आ जाती है। जब हम छोटे-छोटे कदमों से स्कूल जाते थे , कभी स्कूल न जाने के लिए रो-रो कर पूरा घर सर पर उठा लेते थे तो कभी स्कूल जाने के लिए जिद्द करना। वो पेट दर्द का बहाना बना कर माँ के सामने नाटक करना।
ये यादें एक सुनहरे पल की तरह जीवन के किसी महत्वपूर्ण हिस्से में बंद हो जाती है, लेकिन जब ये बहार आती है , तो सुख हो या दुःख हो सभी को पीछे छोड़ कर एक अजब सी ख़ुशी होने लगती है। ये ऐसे सुनहरे पल होते है जो बीत जाने के बाद कभी लौट कर नही आते , और जीवन के हर पहलु में कहीं न कहि अपनी छाप छोड़ जातें हैं।
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