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Showing posts from 2018

सोशल मीडिया वाले इमोशन्स, कोई तो रोक लो...

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सोशल साइट्स के बारे में कौन नहीं जानता. जनाब ये इंडिया है जो अब डिजिटल हो चुका है. एक साल के बच्चे को भी फेसबुक और दूसरी साइट्स चलानी आती है. सोशल साइट्स जिसमें हम दोस्त बनाते हैं और जाहिर सी बात है कि किसी के दोस्त बनते भी हैं. भावनाओं को हथेली में लिए हम उन दोस्तों में इतना डूब जाते हैं की असल जिंदगी के दोस्तों से दूर कर लेते हैं. बात-चीत से शुरू होकर दोस्ती कब प्यार में बदल जाती है पता ही नहीं चलता. और हद तो तब हो जाती है जब जीने-मरने की झूठी कसम खाने से भी ये लोग बिलकुल पहरेज नहीं करते. वो समय गया जब प्यार करने के लिए और किसी को जानने के लिए टाइम लगता था. भाई टाइम फ़ास्ट हो चला है. फटाफट वाली दोस्ती फिर उससे भी फटाफट वाला प्यार और-तो-और फिर फटाफट वाला ब्रेकअप. और फिर कहते हैं की समय बदल रहा था हम क्यों पीछे रहें. सच कहूं तो बात समय की नहीं हमारी भावनाओं की होती है. जो पंख लगाकर सिर्फ दिल की ही सुनना चाहती. चमक-धमक के पीछे हम इतना मदहोश हो चुके होते हैं की सही गलत का पता भी नहीं चलता. खुद को भी पता होता है की सामने वाला आपकी भावनाओं से खेल रहा है फिर भी उसी की तरफ बह ज...

वो दफ्तर से घर तक का रास्ता...

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वो एक दफ्तर ही तो होता है जहां मन को शांति और सुकून मिलता है. हां बात अलग है जब काम का प्रेशर कभी-कभी ओवर कंट्रोल होने लगता है और हम झल्ला उठते हैं. लेकिन उस झल्लाहट में भी एक सुकून ही तो होता है जिसका हमें बाद में अहसास होता है.और वो अहसास भी तब होता है जब हम खुद को किसी काम में व्यस्त या यूं कहूँ तो फंसाने के बारे में सोच रहे होते हैं और हमें कोई काम नहीं मिलता. खैर ये दर्द सिर्फ मुझे ही नहीं ऐसे तमाम लोगों को होता है जो ऐसी परिस्थितियों से गुजर रहे होते हैं. घर में काम कम नहीं होते हैं लेकिन वो ऑफिस वाले काम से डिफरेंट भी तो होते हैं. घर में हमें नये कपड़े पहनने का क्रेज भी कहां होता है. जब तक नया स्टाइल लोगों को दिखाओ नहीं, उसमें भी अपना अलग टशन होता है जनाब. फिर सारा दिन काम में मन भी लगता है जब आपके आस-पास तारीफों के पुल बंध रहे होते हैं. काम के साथ साथ खाने की चीज़ों में भी इंटरेस्ट बढ़ने लगता हैं. अलग-थलग लोगों के अलग-थलग तौर तरीके और सबसे बड़ी चीज़ तो उनका स्वाद भरा खाना वो घर में कहां मिलता है..? जब भी दफ्तर का काम खतम करके घर की ओर चलते हैं तो वो जो नज़ारे होते ...

आज मन उदास है..

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हाँ लिख तो रही हूँ कुछ-कुछ, अपनी कल्पनाओं के मोती को भावनाओं की डोर से भी पिरोने की कोशिश करती हूं लेकिन अभी नाकाम हूं पता नहीं क्यों.... पता नहीं क्यों अपने जज्बातों को कागज में उतारने से भी डर लगता है, फिर भी लिख तो रही हूं कुछ-कुछ... हाँ अक्सर मन उदास तो होता है लेकिन जब कोई साथ होता है तो वो उदासी भी छू मंतर हो जाती है. वो साथ सिर्फ जीवन साथी का नहीं आपके जीवन दाता का भी हो तो जिंदगी आसान सी हो जाती है.. कहते हैं रस्ते की ठोकर आपको आपके जीवन का असल मतलब भी सिखाने का हुनर रखती है. वो समय भी लाजवाब था जनाब जब दुनिया दारी से कोई भी मतलब नहीं हुआ करता था. हम शाम के समय पार्क में खेलने का और दोस्तों के साथ साइकिल चलाने का बेसब्री से इंतजार किया करते थे. हाँ इंतजार नहीं होता था तो वो मास्टर जी के घर आने का, तब तो भगवान जी से भी यही प्रार्थना हुआ करती थी या तो बारिश हो जाए या तो मास्टर जी की तबियत खराब हो जाए जिससे हम थोडा समय और मस्ती कर सकें. वो नटखट सी प्रार्थना भगवान जी तब भी अनसुना कर देते थे. जैसे जैसे हम बड़े होते जाते हैं हमारी अपेक्षाए इतनी ज्यादा बढ़ जाती हैं जो हम...