सोशल मीडिया वाले इमोशन्स, कोई तो रोक लो...

सोशल साइट्स के बारे में कौन नहीं जानता. जनाब ये इंडिया है जो अब डिजिटल हो चुका है. एक साल के बच्चे को भी फेसबुक और दूसरी साइट्स चलानी आती है. सोशल साइट्स जिसमें हम दोस्त बनाते हैं और जाहिर सी बात है कि किसी के दोस्त बनते भी हैं. भावनाओं को हथेली में लिए हम उन दोस्तों में इतना डूब जाते हैं की असल जिंदगी के दोस्तों से दूर कर लेते हैं. बात-चीत से शुरू होकर दोस्ती कब प्यार में बदल जाती है पता ही नहीं चलता. और हद तो तब हो जाती है जब जीने-मरने की झूठी कसम खाने से भी ये लोग बिलकुल पहरेज नहीं करते.


वो समय गया जब प्यार करने के लिए और किसी को जानने के लिए टाइम लगता था. भाई टाइम फ़ास्ट हो चला है. फटाफट वाली दोस्ती फिर उससे भी फटाफट वाला प्यार और-तो-और फिर फटाफट वाला ब्रेकअप. और फिर कहते हैं की समय बदल रहा था हम क्यों पीछे रहें. सच कहूं तो बात समय की नहीं हमारी भावनाओं की होती है. जो पंख लगाकर सिर्फ दिल की ही सुनना चाहती.


चमक-धमक के पीछे हम इतना मदहोश हो चुके होते हैं की सही गलत का पता भी नहीं चलता. खुद को भी पता होता है की सामने वाला आपकी भावनाओं से खेल रहा है फिर भी उसी की तरफ बह जाने से खुद को नहीं रोक पाते. और डूबते चले जाते हैं उस गहरे सागर में. दुनिया में क्या हो रहा है और क्या सही है इसे भी इग्नौर कर बस उस सोशल मीडिया वाले प्यार को ही असल दुनिया मान बैठते हैं. फिर वो चाहे कभी आपसे मिला ही क्यों ना हो.


फिर क्या जो कसमें-वादे होते हैं वो लड़ाई-झगड़ों में खो कहीं खो से जाते हैं. और सिलसिला शुरू होता है ब्लाक का और फोन कॉल्स रिजेक्शन का. और दिल करता है आग लगाने देने को जमाने को और फोन को, जो इस फसाद की पूरी जड़ होता है. लेकिन फिर भी ऐसा नहीं कर पाते. जनाब मालूम सब कुछ होता है लेकिन कहते हैं ना जब दिमाग खराब होता है तो कुछ भी गलत सही समझ नहीं आता.


तो जनाब थोड़ी अक्ल का इस्तमाल कर इमोशंस को काबू कर अपने करीबियों पर ज्यादा विश्वास रखें क्योंकि आपके बुरे समय में सिर्फ वही काम आएंगे जो वाकई आपके नजदीक हैं और आपके दिल के करीब हैं. फसबूकिया सिर्फ लाइक, कमेंट्स कर आपको खुश रख सकते हैं लेकिन असल ख़ुशी अपनों में ही है.

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