आज मन उदास है..
हाँ लिख तो रही हूँ कुछ-कुछ, अपनी कल्पनाओं के मोती को भावनाओं की डोर से भी पिरोने की कोशिश करती हूं लेकिन अभी नाकाम हूं पता नहीं क्यों.... पता नहीं क्यों अपने जज्बातों को कागज में उतारने से भी डर लगता है, फिर भी लिख तो रही हूं कुछ-कुछ...
हाँ अक्सर मन उदास तो होता है लेकिन जब कोई साथ होता है तो वो उदासी भी छू मंतर हो जाती है. वो साथ सिर्फ जीवन साथी का नहीं आपके जीवन दाता का भी हो तो जिंदगी आसान सी हो जाती है.. कहते हैं रस्ते की ठोकर आपको आपके जीवन का असल मतलब भी सिखाने का हुनर रखती है.
वो समय भी लाजवाब था जनाब जब दुनिया दारी से कोई भी मतलब नहीं हुआ करता था. हम शाम के समय पार्क में खेलने का और दोस्तों के साथ साइकिल चलाने का बेसब्री से इंतजार किया करते थे. हाँ इंतजार नहीं होता था तो वो मास्टर जी के घर आने का, तब तो भगवान जी से भी यही प्रार्थना हुआ करती थी या तो बारिश हो जाए या तो मास्टर जी की तबियत खराब हो जाए जिससे हम थोडा समय और मस्ती कर सकें. वो नटखट सी प्रार्थना भगवान जी तब भी अनसुना कर देते थे.
जैसे जैसे हम बड़े होते जाते हैं हमारी अपेक्षाए इतनी ज्यादा बढ़ जाती हैं जो हमारी जिंदगी का हिस्सा भी बन जाती हैं. अगर ये अपेक्षाए पूरी हो जाएं तो कहना ही क्या और अगर ना हो पाएं तो सारा कुसूरवार भगवान को मानकर किस्मत खराब होने की दुहाइयां देने लगते है. जिंदगी में जिसे हम चाहते हैं वो सब कुछ हमें मिल जाए ऐसा तो जरूरी नहीं है. लेकिन निराशा का वो स्वाद भी गले से नीचे नहीं उतरता.
काश हम कभी बड़े ही न हुए होते, काश हमें किसी के खोने का अहसास ही ना होता. दिल टूटने के उस दर्द के अहसास से भी काश हम कोसों दूर होते.. वो बचपन भी कितना अच्छा था. वो भावनाएं हमें पता ही नहीं होती थी जिससे किसी के दूर जाने का अहसास जुडा होता था. हाँ अब वो उम्र भी चली गई और वो नासमझी भी. अब मालूम है वो अहसास जो हमारा दिल भी तोड़ देते हैं और हमे उदास भी कर देते हैं.
हाँ अक्सर मन उदास तो होता है लेकिन जब कोई साथ होता है तो वो उदासी भी छू मंतर हो जाती है. वो साथ सिर्फ जीवन साथी का नहीं आपके जीवन दाता का भी हो तो जिंदगी आसान सी हो जाती है.. कहते हैं रस्ते की ठोकर आपको आपके जीवन का असल मतलब भी सिखाने का हुनर रखती है.
वो समय भी लाजवाब था जनाब जब दुनिया दारी से कोई भी मतलब नहीं हुआ करता था. हम शाम के समय पार्क में खेलने का और दोस्तों के साथ साइकिल चलाने का बेसब्री से इंतजार किया करते थे. हाँ इंतजार नहीं होता था तो वो मास्टर जी के घर आने का, तब तो भगवान जी से भी यही प्रार्थना हुआ करती थी या तो बारिश हो जाए या तो मास्टर जी की तबियत खराब हो जाए जिससे हम थोडा समय और मस्ती कर सकें. वो नटखट सी प्रार्थना भगवान जी तब भी अनसुना कर देते थे.
जैसे जैसे हम बड़े होते जाते हैं हमारी अपेक्षाए इतनी ज्यादा बढ़ जाती हैं जो हमारी जिंदगी का हिस्सा भी बन जाती हैं. अगर ये अपेक्षाए पूरी हो जाएं तो कहना ही क्या और अगर ना हो पाएं तो सारा कुसूरवार भगवान को मानकर किस्मत खराब होने की दुहाइयां देने लगते है. जिंदगी में जिसे हम चाहते हैं वो सब कुछ हमें मिल जाए ऐसा तो जरूरी नहीं है. लेकिन निराशा का वो स्वाद भी गले से नीचे नहीं उतरता.
काश हम कभी बड़े ही न हुए होते, काश हमें किसी के खोने का अहसास ही ना होता. दिल टूटने के उस दर्द के अहसास से भी काश हम कोसों दूर होते.. वो बचपन भी कितना अच्छा था. वो भावनाएं हमें पता ही नहीं होती थी जिससे किसी के दूर जाने का अहसास जुडा होता था. हाँ अब वो उम्र भी चली गई और वो नासमझी भी. अब मालूम है वो अहसास जो हमारा दिल भी तोड़ देते हैं और हमे उदास भी कर देते हैं.
काश हम बड़े ही ना होते
ReplyDeleteBahut yaad aaten h mujhe wo pal...
ReplyDeleteJinme gujra mera bita hua kal...