अपना काम खुद करो ना, बच्चे नहीं हो तुम अब...

गुस्सा तो बहुत आता है तुम पर, जितने पैसे हैं न तुम्हारे पास उतनी ही छोटी सोच भी, अब देखो जब तुमको अपना होटल चलाना है, या जब तुमको किराने की दुकान खोलनी होती है, तब सोचते हो कम पैसे खर्च करने पड़े और मिल जाए ऐसा मजदूर जो दिन रात मरता रहे और काम करता रहे. तब दिमाग में घंटी बजती है न की किसी बच्चे को ही रख लें काम पर, जो घर परिवार से गरीब हो और तो और मजबूर भी हो. अरे.. रे..ये सोच किसी की जन्दगी बर्बाद कर देती है ये क्यों नही समझते तुम. ये वो नन्हें हाँथ हैं जो शायद तुम्हारे घर में भी होंगे, ये वो दबी हुई खिलखिलाहट है तो तुम्हारे घर में भी कहीं न कहीं गूंजती ही होगी.


अपना बच्चा फूल सा नाजुक और उस मजदुर का मजबूर बच्चा काम करने की मशीन. नियम कायदे तुमको पता नहीं ये वही देश है जहाँ नियम बनते तो हैं लेकिन कभी भी ना पूरा करने के लिए और कभी भी तोड़ देने के लिए. शर्म करो क्योंकि शर्म करना बाकि है तुम में अभी, जब भी कभी कहीं बहार जाते हो तो बच्चे भीख मांगते नज़र तो आ ही जाते होंगे, और ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है अक्सर किसी गंदगी के ढेर से गंदगी बीनते भी आराम से नज़र आ जाते होंगे.


हम आराम की जिन्दगी जीते हैं क्यों ? क्योंकि हमारे पास सब कुछ है, लेकिन कोई है जो इस आराम के सपने अक्सर थकी आँखों की नींद में ही आते है. अच्छा खाने की सोच सुखी रोटी में बदल जाती है. नहीं तुम नहीं समझोगे क्योंकि इंसानियत है ही कहाँ तुम्हारे अंदर. अगर शर्म आ जाए तो आगे बढ़ो और बंद करो अपने दिमाग की फितूर और रोकने में मदत करो उनकी जो सच में इस श्राप को जड़ से खत्म करना चाहते है.  
loading...

Comments

Popular posts from this blog

परियों की दुनिया, चलो घूम आएं..

दोस्ती..प्यार..और टाइम

आज मन उदास है..