बहुत दिनों बाद बस यूं ही..

नुमाइश और दिखावे से भरी इस दुनिया में दो पल खुद के लिए और अपनों के लिए निकालना तो मानों इतना मुश्किल सा हो जाता है जिसकी हमें बाद में वैल्यू पता चलती है. आज मैं बहुत दिनों के बाद अपना नया ब्लॉग अपनी कुछ कल्पनाओं के साथ यूँ ही लिख रही हूँ. जिन्दगी की ऐसी सच्चाई जिससे हमसब भागते हैं पर कुछ ऐसा भी है जिसके लिए हमे थोड़े ठहराव की भी जरूरत होती है. वो ठहराव आपके लिए जरूरी है.



हमेशा ऐसा ही लगता है की हम ही बेहतर हैं और हमसे बेहतर तो दुनिया में कोई दूजा है ही नहीं. ये सोच हमें और भी पीछे ले जाती है जिसका अंदाजा हमें तब होता है जब सामने वाला हमसे कहीं आगे निकल जाता है. जिन ऊँचाइयों को वो छू रहा होता है दरअसल कभी हम भी वही सपने अपनी ऊँची उड़ानों में लेकर उड़ा करते थे, लेकिन सिर्फ उड़ानों के सपने पंखों में रखकर कोई भला कितनी दूर तक जाएगा. उम्र का वो भी पड़ाव आता है जनाब जो हम कभी भूल जाया करते हैं.



जब भी मैं कहीं बाहर घूमने जाती हूं तो बाहरी चमक के अलावा भी मेरी नज़रे किसी और चीज़ पर ही टिक जाती है. वो भूखी होती है, वो बिना कपड़ों के भी होती है और तो कभी कभी वो इतनी बेबस और लाचार होती है की उसे खुद को संभाल पाना भी मुश्किल होता है. हम भी कितने अजीब होते हैं न. ना जाने कितनी चीज़ों के लिए फ़िज़ूल खर्च कर देते हैं जिसकी न तो कोई खास जरूरत होती है और ना ही वो घर में रखने योग्य. भाई पैसा है तो खर्च क्यों न करें हम भला. पैसा किसी की जरूरत भी पूरा करता है ये सब हम क्यू भूल जाया करते हैं. तो ये तो आपको और हम सबको पता है की वक्त की अहमियत रखना कितना जरुरी होता है. लेकिन असल में फर्क तो तब पड़ेगा जब आप उस अहमियत रखने वाले इंसान की कदर करेंगे जिसके लिए बासी खाना भी जरूरी होता है.

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