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दोस्ती..प्यार..और टाइम

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कपल्स में झगड़े हमेशा टाइम को लेकर होते हैं, किसी के पास काम ज्यादा होता है, तो कोई अपनी खुद की लाइफ में इतना मस्त हो जाता है कि, वो अगले को भूल ही जाता है..क्या सोचते हैं? आप भी ऐसे हैं क्या..? खैर जब नई नई दोस्ती होती है ना...तो बस ऐसा लगता है कि, यही दोस्त दुनिया का सबसे अच्छा दोस्त है..बाते होती हैं, मौज मस्ती होती है, और ना जाने कितना घूमना, फिरना वगैरह...वगैरह. फिर जब वो दोस्त सिर्फ दोस्त नहीं रहता...वो कुछ ज्यादा ख़ास हो जाता है, तो फोन कॉल्स का टाइम भी बढ़ने लगता है. चैट की बात तो पूछो ही ना...इतनी चैट कि एक दिन की 100 मैसेज वाली लिमिट कब खतम हो जाती है कुछ पता ही नहीं चलता.  लेकिन अब तो जमाना वाट्सएप, इन्स्टा और फेसबुक वाले मैसेंजर का हो चला है. अनलिमिटेड बातें करो और क्या. उसके बाद भी मैसेज नहीं आते. ऐसा लगता है, पूरी जिंदगी..उस जिंदगी का पूरा टाइम. और उस टाइम का हर एक सेकेण्ड सिर्फ उसी के लिए है. सामने वाले की पल पल की खबर होती है. वो क्या कर रही है, कैसी है सब कुछ पता होता है. धीरे धीरे टाइम गुजरता है..सब कुछ अच्छा चल रहा होता है. इस बदलते हुए समय के साथ कुछ तो बदल रहा होत...

काश...

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क्या कहूँ...निःशब्द हूं.हां ये मानती हूँ कि आज जो मैं अपनी प्रतिक्रिया इस प्लेटफ़ॉर्म में रखने वाली हूँ, उस बारे में पूरा देश बात कर रहा है, ये प्रतिक्रिया थोड़ी देर से दे रही हूं, लेकिन दिल नहीं माना तो एक लंबे अरसे के बाद लिख रही हूं। सुशांत सिंह राजपूत के जाने का गम बहुत गहरा है। लेकिन उससे भी ज्यादा गम उनके यूं चले जाने की वजह का है। वजह डिप्रेशन..वजह भेदभाव..वजह हजारों की भीड़ में उस इंसान को अकेले छोड़ देना जो आँखों में सपने लिए स्ट्रगल कर रहा है. बहुत ही गंदी फीलिंग होती है  ये, जब आपके आस-पास बहुत लोग होते हैं, लेकिन उसके बाद भी आपसे बात करने वाला कोई नहीं होता, आपका हाल-चाल पूछने वाला कोई नहीं होता, कोई ये नहीं पूछता की कहीं तुमको मेरी जरूरत तो नहीं? पूछेगा भी क्यों कोई? किसी को अपनी जिंदगी से इतना वक्त निकालने का समय है? मोबाईल के उन तमाम तामझाम वाले फीचर्स से किसी को फुरसत कहाँ?  किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट देखने से इस बात का अंदाजा न लागाएं की वो तो खुश है, बेहद खुश...क्योंकि चेहरे पर उसकी मुस्कुराहट जो रहती है. लेकिन यकीन मानिए वो इंसान असल में अकेलेपन...

तुम्हारा ख्याल, दोस्तों के नाम

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काफी दिनों के बाद एक बार फिर से कुछ लिखने को दिल चाहा, लिखना कुछ ऐसा चाह रही हूं जो आपके दिल को छू जाए। कुछ ऐसा जो दिल में उतर जाए। बात दिल को छू लेने और दिल में उतरने की हो तो, लगता है कि अपने प्यार के बारे में लिख जाऊं।  हां वही प्यार जो खास होता है, दिल के करीब होता है, और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, जिसके बिना जिंदगी, जिंदगी नहीं लगती। ये प्यार है अपनी मां से, अपने पिता से, भाई से, बहन से, किसी खास से और सबसे अजीज दोस्तों से। आज सुबह दफ्तर में तुम्हारे बगल में बैठी थी, तुम कुछ लिख रहे थे शायद। हां तुम लिख ही तो रहे थे, कुछ शब्द पिरो रहे थे, अपने दोस्तों के नाम। शब्दों की माला को पिरोकर वो एहसास उन शब्दों में डालने की तुम्हारी कोशिश साफ नजर आ रही थी तुम्हारी आंखों में। तुम्हारे एहसास को तुम्हारी उंगलियाँ बयां कर रही थी। जो तुम लिखना चाह रहे थे, वो सब तुम्हारी उंगलियाँ बड़े ही शौक से वर्ड पैड पर लिखती चली जा रही थीं। लेकिन तुम बीच में ही रुक गए। ये कहते हुए की आज मैं कुछ खास लिखूँगा अपने दोस्तों के नाम। मैंने भी तुमसे बोला था कि तुम्हारे इन शब्दों को मैं पूरा करूंगी। तु...

कैसा ये प्यार है ?

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कुछ लोग जिंदगी में इतने खास होते हैं.. कि मानों उनके बिना लाइफ की गाड़ी बढ़ने का नाम ही नहीं ले सकती..  साथ में हंसना..साथ में रोना..और फिर रूठना-मनाना.. कितना अजीब सा होता है ये रिश्ता.. रिश्ता कोई भी हो.. किसी के साथ भी हो..लेकिन ये डोर तभी खूबसूरत हो पाएगी जब इसमें प्यार, विश्वास और सुकून होगा.. प्यार के नाम से आज भी दिमाग में ये सवाल बे-इंतिहान शोर करता हैं कि.. आखिर ये प्यार है क्या..? क्या आज भी पहली नजर वाला प्यार किसी को हो सकता है..? क्या वो एक चेहरा जिंदगी भर के लिए किसी के दिल में कैद हो सकता है..? सवाल कई हैं.. लेकिन जवाब की तलाश थक सी गई है.. आज के रिलेशनशिप में पहली नजर वाला प्यार कहीं गुम सा हो गया है.. हर कोई सिर्फ अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए.. और सोसाइटी में अपने स्टैंडर्ड को और भी ज्यादा हाई दिखाने के लिए गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड बनाने में यकीन रखते हैं..जिसे साफ़ तौर पर आज के समय का ट्रेंड भी कहना बिलकुल गलत नहीं होगा.. ऐसे ट्रेंड का क्या फायदा..जिसमें एक-दूसरे की फीलिंग्स से ज्यादा अपना ईगो प्यारा लगने लगे.. सोसाइटी के ट्रेंड में कहीं पीछे ना छ...

सोशल मीडिया वाले इमोशन्स, कोई तो रोक लो...

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सोशल साइट्स के बारे में कौन नहीं जानता. जनाब ये इंडिया है जो अब डिजिटल हो चुका है. एक साल के बच्चे को भी फेसबुक और दूसरी साइट्स चलानी आती है. सोशल साइट्स जिसमें हम दोस्त बनाते हैं और जाहिर सी बात है कि किसी के दोस्त बनते भी हैं. भावनाओं को हथेली में लिए हम उन दोस्तों में इतना डूब जाते हैं की असल जिंदगी के दोस्तों से दूर कर लेते हैं. बात-चीत से शुरू होकर दोस्ती कब प्यार में बदल जाती है पता ही नहीं चलता. और हद तो तब हो जाती है जब जीने-मरने की झूठी कसम खाने से भी ये लोग बिलकुल पहरेज नहीं करते. वो समय गया जब प्यार करने के लिए और किसी को जानने के लिए टाइम लगता था. भाई टाइम फ़ास्ट हो चला है. फटाफट वाली दोस्ती फिर उससे भी फटाफट वाला प्यार और-तो-और फिर फटाफट वाला ब्रेकअप. और फिर कहते हैं की समय बदल रहा था हम क्यों पीछे रहें. सच कहूं तो बात समय की नहीं हमारी भावनाओं की होती है. जो पंख लगाकर सिर्फ दिल की ही सुनना चाहती. चमक-धमक के पीछे हम इतना मदहोश हो चुके होते हैं की सही गलत का पता भी नहीं चलता. खुद को भी पता होता है की सामने वाला आपकी भावनाओं से खेल रहा है फिर भी उसी की तरफ बह ज...

वो दफ्तर से घर तक का रास्ता...

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वो एक दफ्तर ही तो होता है जहां मन को शांति और सुकून मिलता है. हां बात अलग है जब काम का प्रेशर कभी-कभी ओवर कंट्रोल होने लगता है और हम झल्ला उठते हैं. लेकिन उस झल्लाहट में भी एक सुकून ही तो होता है जिसका हमें बाद में अहसास होता है.और वो अहसास भी तब होता है जब हम खुद को किसी काम में व्यस्त या यूं कहूँ तो फंसाने के बारे में सोच रहे होते हैं और हमें कोई काम नहीं मिलता. खैर ये दर्द सिर्फ मुझे ही नहीं ऐसे तमाम लोगों को होता है जो ऐसी परिस्थितियों से गुजर रहे होते हैं. घर में काम कम नहीं होते हैं लेकिन वो ऑफिस वाले काम से डिफरेंट भी तो होते हैं. घर में हमें नये कपड़े पहनने का क्रेज भी कहां होता है. जब तक नया स्टाइल लोगों को दिखाओ नहीं, उसमें भी अपना अलग टशन होता है जनाब. फिर सारा दिन काम में मन भी लगता है जब आपके आस-पास तारीफों के पुल बंध रहे होते हैं. काम के साथ साथ खाने की चीज़ों में भी इंटरेस्ट बढ़ने लगता हैं. अलग-थलग लोगों के अलग-थलग तौर तरीके और सबसे बड़ी चीज़ तो उनका स्वाद भरा खाना वो घर में कहां मिलता है..? जब भी दफ्तर का काम खतम करके घर की ओर चलते हैं तो वो जो नज़ारे होते ...

आज मन उदास है..

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हाँ लिख तो रही हूँ कुछ-कुछ, अपनी कल्पनाओं के मोती को भावनाओं की डोर से भी पिरोने की कोशिश करती हूं लेकिन अभी नाकाम हूं पता नहीं क्यों.... पता नहीं क्यों अपने जज्बातों को कागज में उतारने से भी डर लगता है, फिर भी लिख तो रही हूं कुछ-कुछ... हाँ अक्सर मन उदास तो होता है लेकिन जब कोई साथ होता है तो वो उदासी भी छू मंतर हो जाती है. वो साथ सिर्फ जीवन साथी का नहीं आपके जीवन दाता का भी हो तो जिंदगी आसान सी हो जाती है.. कहते हैं रस्ते की ठोकर आपको आपके जीवन का असल मतलब भी सिखाने का हुनर रखती है. वो समय भी लाजवाब था जनाब जब दुनिया दारी से कोई भी मतलब नहीं हुआ करता था. हम शाम के समय पार्क में खेलने का और दोस्तों के साथ साइकिल चलाने का बेसब्री से इंतजार किया करते थे. हाँ इंतजार नहीं होता था तो वो मास्टर जी के घर आने का, तब तो भगवान जी से भी यही प्रार्थना हुआ करती थी या तो बारिश हो जाए या तो मास्टर जी की तबियत खराब हो जाए जिससे हम थोडा समय और मस्ती कर सकें. वो नटखट सी प्रार्थना भगवान जी तब भी अनसुना कर देते थे. जैसे जैसे हम बड़े होते जाते हैं हमारी अपेक्षाए इतनी ज्यादा बढ़ जाती हैं जो हम...

ये उन दिनों की बात है...

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उन तमाम यादों का पिटारा तब खुल ही जाता है जब हम अपने पुराने दोस्तों के साथ काफी लम्बे समय के बाद बैठते हैं. जितना उत्साह उनसे दोबारा मिलने का होता है उससे कहीं ज्यादा उत्साह उनसे पुरानी यादों को तरोताजा करने का होता है. वो हिलती हुई पुरानी सी लकड़ी की मेज अब नयी हो चुकी है. प्लास्टिक की कुर्सियों की जगह अब बढियां लकड़ी की कुर्सियां लग गई है. बदलाव तो बहुत हुए हैं लेकिन नहीं बदले तो वो होटल को चलाने वाले 'अंकल जी'. जिनके बाल कुछ सफ़ेद हो गए हैं और वो पहले से ज्यादा स्मार्ट हो गए है. फर्क तो अब भी नही है आखिर उन्होंने अपनी बूढी डबडबाती आँखों से पहचान लिया हमें.. कैंटीन में ठहाके तो पहले भी लगते थे लेकिन उन ठहाकों में शरारत भरी आवाज के साथ गजब का जोश भी हुआ करता था. आज हम साथ में तो बैठे है लेकिन अब शरारत समझदारी बन चुकी है और वो वाला जोश जिम्मेदारियों में कहीं गुम हो गया है. चलो खैर है इस बात की, की उम्मीद तो नहीं थी की हम सारे दोस्त इस तरह फिर से एक साथ बैठे होंगे, चाय पिने की आदत अभी भी नहीं पड़ी थी उसकी, जिसे मैं पसंद करता था. सामने से देखा तो कॉलेज का वो पहला ...