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Showing posts from May, 2017

यहां थूंक दिया ना, तो बता रही हूं पीट दूंगी...

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गुस्सा तो बहुत आता है..जब तुम यूँ चलती कार नहीं तो बस की खिड़की से अपना मुंह निकाल कर थूंकते हो,  तब मन में आता है की तुमको पीट दूँ,. ये सोच किसी पतिंगे की तरह दिल में आती है, फिर दिमाग पर, और अंदर ही अंदर जुबान पर भी आ जाती है लेकिन किस्मत तुम्हारी अच्छी है की ये जुबान से बाहर नही आ पाती. विश्वास मानो और मोदी जी की बात भी.  काहे अपने मुंह की तरह सड़क गंदी करने में तुले हुए हो.. हाँ बात अलग है मुंह जैसा भी है तुम्हारा है लेकीन सड़क का क्या??  वो तो हम सबकी है न.. रहने दो और जाने दो तुम्हारे बस का नहीं, अपनी लाइफ में चाहते हो की कोई हूर की परी आए, लेकिन जनाब हूर की परी चाहिए तो अपनी शक्ल को एक बार शीशे में देख लो और मुंह खोलकर अपने दांतों को भी देखना मत भूलना. तब कोलगेट, पेप्सोडेंट, और वो कौन सा टूथ पेस्ट होता है जो दांतों को सिर्फ सात दिन में चमचमाते मोती जैसा बना देते हैं?? नहीं तब कुछ भी काम नहीं आएगा. मसाला न सिर्फ तुम्हारे दांतों को गंदा करता है बल्कि दूसरों के आगे तुम्हारे चरित्र की भी पूरी तरह से वाट लगा देते है, अब ये मत सोचना की एक कुल्ला करके तुम जो खिलखिला...

अपनी अल्हड़ जवानी सम्भालिये जनाब, जो राह चलते मचल जाती है..

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माना जनाब आप अब 18 के पूरे हो चुके हैं, और आपके पंखों ने तो 18 से पहले ही उड़ान भरनी शुरू कर दिए थे, लेकिन रुकिए और जरा सम्भालिये, आप खुद से नहीं अपनी अल्हड़ जवानी से जो आपको कुछ देर के मज़े के बदले में पूरी जिन्दगी भर की परेशानी में डाल सकती है. जब रस्ते में चलते हो बगल से निकली लड़की को आगे से पीछे तक और उपर से नीचे तक किसी एक्सरे मशीन की तरह ट्रैश कर जाते हो, तब दिल में सुकून तो बहुत मिलता होगा.. है ना, फिर क्या चल देते हैं अपने रस्ते पर, अब भाई जवान हो उपर से भगवान ने आंखे तो दी हैं उसका इस्तेमाल भी नही करोगे क्या, अगर नहीं किया तो मर्द कहां कहलाओगे..? मर्द कहलाना और लड़कियों को मर्यादा का पाठ पढ़ाना, कौन से स्कूल के मास्टर ने सिखा दिया, क्योंकि घर में तो ऐसा कोई भी नहीं सिखाता, ये छोड़ो और ये बताओ बीच राह में चलते किसी लड़की पर फब्दियाँ कसना कौन से एक्स्ट्रा क्लास में सीख लिया. असल में टैलेंटेड हो बिना किसी के सिखाए, बिना किसी के पढाए तुम तो कांड पे कांड ही किए जा रहे हो. लड़कियां 18 की नहीं होती क्या?? लड़कियों के पास ऑंखें नहीं होती क्या... क्या फर्क है..?? फर्क तो बहूत है.. ब...

डिस्टेंस रिलेशनशिप, 'डिस्टेंस' का मतलब समझते हैं ना आप..

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'डिस्टेंस' मतलब दूरी, और रिलेशनशिप का मतलब तो आप भी समझते हैं जनाब, अब रिलेशनशिप का मतलब सबके लिए अलग अलग होता है लेकिन ये जो 'डिस्टेंस रिलेशनशिप' नाम की ये चिड़िया कुछ ही लोगों के गले पड़ी होगी, हालांकि समय बदल चुका है, और साथ में बदल चुका इस रिलेशनशिप का मतलब भी.  पहले की बात थी जब अक्सर लोगों को ट्रेन में या फिर बस में सफ़र के दौरान किसी से प्यार हो जाया करता था. तब बस फोन से बात कर के ही अपने मन को तसल्ली दे दिया करते थे.. अब तो बात ही कुछ और हो गई है, वीडियो कालिंग ने तो डिस्टेंस रिलेशनशिप नाम की चिड़िया का सिर काट दिया. मतलब कहने का है की डिस्टेंस मानो फुर्र हो गया हो. कहते हैं न रिश्ते जितने करीब होते हैं, उनके टूटने की उम्मीद भी उतनी ही होती है. तो मैंने भी यूँ ही कहीं पढ़ लिया था की वो रिश्ते ज्यादा टिकते हैं जिनमें थोड़ी दूरी होती है क्या सच में इसमें सच्चाई है..?? दूर रहकर एक दुसरे की फिकर हर समय मन को घेरे रहती है, जब भी मन उदास होता है तो मानो किसी की कमी खल रही हो. आपके आस पास लाखों की भीड़ होती है फिर भी आप खुद को अकेले महसूस करते हैं.  डिस्टेंस का...

ऐसे सवाल जिनके जवाब नहीं...

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अकसर हम अपनी जिन्दगी में कुछ ऐसे सवालों के जवाब तलाश करते हैं जिनके जवाब हमें खुद मालूम होते हैं. तलाशी इसलिए चलती है जिससे हमें ये लगे की जो जवाब हमारे पास है शायद कहीं उससे कुछ अलग जवाब मिल जाए, हम भी कितने अजीब होते हैं, है ना. खैर ये लाइफ भी बहूत ज्यादा अजीब सी होती है, इसे अच्छे से और बिंदास तरीके से स्पेंड करने के लिए हम किसी के साथ को तलाश करते हैं, जिसके सामने हम अपनी सारी फीलिंग्स और वो सारी बातें जिनको हम किसी से भी शेयर नहीं करते वो सब पिटारा सिर्फ एक इंसान के सामने खोल के रख देना चाहते हैं. और तो और भाईसाहब हम जिनके सामने खुली किताब बन जाना चाहते हैं इसके बाद  जब वो साथ मिलता है तो मानो खुद के पांव जमीन पर ही ना पड़ रहे हों. इस गुड टाइम के शुरू होने के साथ ना जाने ये बुद्धू दिमाग क्या क्या सपने पिरोने लगता है, जैसे जैसे समय बीतता है लाइफ की असल सच्चाई भी आँखों के सामने मंडराने लगती है. ये वो सच्चाई है जिसके बारे में हम जानना ही नही चाहते, सबकी लाइफ में सब कुछ परफेक्ट हो ऐसा तो बिलकुल भी जरूरी नहीं है. तब अहसास होता है की अपनों का साथ जिन्दगी में कितना जरूरी होता ह...

'माँ'

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माँ जितना छोटा सा शब्द, लेकिन पूरी दुनिया ही समाई है, मौत के रास्ते बहूत होते हैं लेकिन जन्म के सिर्फ एक वो है मां, जब हम छोटे हुआ करते थे माँ की कोई भी बात नहीं मानते थे, मानों जिसके लिए वो मना करती थीं हम जानबूझ कर वही काम किआ करते थे, और फिर बदले में मिलती थी मां की डांट, लेकिन अब जैसे जैसे हम बड़े हुए समय गुजरता गया और मेरा मेरी माँ के साथ रिश्ता भी गहराता चला गया.. आज मैं और मेरी मां के बीच ऐसा रिश्ता बन चुका है जैसे हम कोई सहेली हों, मैं तो दिनभर से रात तक की सारी खबर माँ के पीछे पीछे चलके सुनती हूँ. फिर मां की भी बारी आती है और हम दोनों ही एक दुसरे में सारी दुनिया ढूंढ लेते हैं, मैं अपनी माँ के पास रहती हूँ हाँ थोड़े बहूत झगड़े होते हैं और विवाद भी कम नहीं होते हमारे बीच लेकिन सच में माँ आप मेरी जिन्दगी में मेरे लिए बेहद खास हो,,  

तो इस दुनिया के बारे में जानते हैं क्या आप.. ??

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और यहाँ से शुरु हुई वो कहानी जिसको जानने को जितना आप उत्सुक हैं यकीन मानिये उतना ही मैं भी थी, क्योंकि दिमाग की खिड़की में सिर्फ एक ही सवाल बार बार किसी घड़ी के सुई के तरह टिक-टिक कर रहा था की आखिर जिस दुनिया के बारे में जानने के लिए मैं इतनी उत्सुक हूँ वो दुनिया है भी या नही, वो दुनिया है सपनों की दुनिया, अभी अच्छे तो कभी बुरे, कभी किसी आसमान में रंगबिरंगी पतंग की तरह खुद को उड़ता देखना तो कभी सागर की गहराइयों से भी गहराई में उतर जाना, क्या आप जानते हैं इस दुनिया के बारे में?? बचपन में जब भी हमारे घर की लाइट मतलब बिजली कट जाया करती थी तब मैं और मुझसे बड़े मेरे भाई-बहन दादी की तख्त को घेर लिया करते थे, उस समय न तो कोई मोबाइल फोन हुआ करता था और न ही टाइमपास करने के दूसरे साधन, छोटे थे तो घर में काम कराने का भी इतना इंटरेस्ट नहीं होता था, इंटरेस्ट तो मोहल्ले में सारे बच्चों को इख्ठा करके छुपन- छुपाई या पौसम-पाई में सारा वक्त यूँ ही गुजार दिया करते थे. तो जब भी दादी के पास बैठती थी तो उनकी काल्पनिक कहानियों और बातों में सिर्फ एक ही बात होती थी की जो सपने हम देखते हैं उनकी असल में वास्तविकत...

'निर्भया' तुम्हारे गुनाहगारों को नहीं मिली माफ़ी...

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और इस तरह जब सुप्रीमकोर्ट का वो कमरा तालियों से गूंज उठा.. तुम सुन रही हो न निर्भया ?? तुम्हारी आँखों में आंसू थे, तुम्हारी आवाज में वो दर्द था जिसकी एक आवाज ही सबको झकझोर कर रख देने के लिए काफी थी, तुम्हारे लिए तुम्हारे गुनाहगारों को सजा दिलाने के लिए वो सब आगे आए जिनके लिए बेटी कुछ भी मायने नहीं रखती थी, याद है वो रात, कोई कैसे भूल सकता है उस हैवानियत को, कोई कैसे भूल सकता है उस वास्तविकता को जिससे तुम जूझी हो, न सिर्फ तुम तुम्हारे माता-पिता भी, लेकिन यकीन मानो आज वो खुश होंगे उस फैसले से जो आज से 5 साल पहले ही हो जाना चाहिए था. देर में ख़ुशी मिली और तुम्हे इन्साफ भी, लोगों को इस फैसले से थोडा तो भरोसा होगा. लेकिन 16 दिसम्बर 2012 से आज के दिन न जाने कितनी बेकसूर लड़कियों ने और मासूमों ने इस गंदी बर्बरता को झेला है. तुमको पता है ये वही लोग हैं जो आज तुम्हारा साथ दे रहे थे जो कल तुम्हारे ही चरित्र पर सवाल उठाते थे, खैर तुमको इन्साफ मिला. और तुम्हारे माता-पिता के लिए ये पल खास है. loading...

ये कनपुरिया बारात है जनाब, टिफिन बिना काम नहीं चलेगा

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भाई कानपुर को क्या कहा जाए. जितनी तारीफ करो उतनी कम. अब ज्यादा सोचने की जरूरत नही आपको क्योंकि आपको यही लग रहा होगा की ये कोई नया ट्रेंड है क्या जो अब टिफिन भी ले जाना पड़ेगा? अरे कानपुरियों ऐसा कोई भी नया ट्रेंड नही हैं. हम तो बात कर हैं बारातों की जो कहीं भी जाम की वजह बन बैठती हैं. अब भाई बारात है तो उसमे लोग डांस में इस तरह खो जाते हैं की क्या कहा जाए. भाई क्यों न खोएं.. इसी दिन का इन्तेजार जो होता है. बस उनका ये इन्तेजार इस कदर कानपुरियों के उपर भारी पड़ जाता है की उनको घंटो जाम में फंसना पड़ता है. जब घंटो जाम में फंसना हो तो सबसे अच्छी नसीहत यही होगी की भईया कानपुरियों अपना खाना साथ ही रखें. न जाने कब जरूरत पड़ जाए. शहर में शादियों की तो भरमार हो गई है. और इन शादियों को लेकर यातायात इस तरह प्रभावित है की किसी अधिकारी का ध्यान तक नहीं जाता. कनपुरिये बेचारे 2 कदम चलते हैं की फिर जाम लग जाता हैं. जब भी बारात निकलनी होती है तो दूसरी तरफ oneway तो twoway में बदल जाता है. अब जाम की क्या बात की जाए जाम तो वैसे भी आम है और शादियों के सीजन में जाम को भी खुमार चढ़ जाता है.