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Showing posts from 2017

ये उन दिनों की बात है...

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उन तमाम यादों का पिटारा तब खुल ही जाता है जब हम अपने पुराने दोस्तों के साथ काफी लम्बे समय के बाद बैठते हैं. जितना उत्साह उनसे दोबारा मिलने का होता है उससे कहीं ज्यादा उत्साह उनसे पुरानी यादों को तरोताजा करने का होता है. वो हिलती हुई पुरानी सी लकड़ी की मेज अब नयी हो चुकी है. प्लास्टिक की कुर्सियों की जगह अब बढियां लकड़ी की कुर्सियां लग गई है. बदलाव तो बहुत हुए हैं लेकिन नहीं बदले तो वो होटल को चलाने वाले 'अंकल जी'. जिनके बाल कुछ सफ़ेद हो गए हैं और वो पहले से ज्यादा स्मार्ट हो गए है. फर्क तो अब भी नही है आखिर उन्होंने अपनी बूढी डबडबाती आँखों से पहचान लिया हमें.. कैंटीन में ठहाके तो पहले भी लगते थे लेकिन उन ठहाकों में शरारत भरी आवाज के साथ गजब का जोश भी हुआ करता था. आज हम साथ में तो बैठे है लेकिन अब शरारत समझदारी बन चुकी है और वो वाला जोश जिम्मेदारियों में कहीं गुम हो गया है. चलो खैर है इस बात की, की उम्मीद तो नहीं थी की हम सारे दोस्त इस तरह फिर से एक साथ बैठे होंगे, चाय पिने की आदत अभी भी नहीं पड़ी थी उसकी, जिसे मैं पसंद करता था. सामने से देखा तो कॉलेज का वो पहला ...

एक कप कॉफी और जिंदगी का सबक...

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काफी समय के बाद लिख रही हूं.. अपनी कल्पना को अपने शब्दों में उतारने का ये ऐसा जरिया है जो यकीन मानिये सबसे अच्छा और सबसे सुखद है. आपके हमारे और हम सबकी जिंदगी में एक ऐसा समय जरुर आता है जिससे कुछ ना कुछ सीखने को मिलता है. वो समय किसी के लिए जल्दी आ जाता है तो किसी के लिए बाद में. पर हाँ जब भी आता है एक गजब का तजुर्बा दे जाता है.  जिंदगी में ऐसा मुकाम जरुर आता है जिसमें आपकी जिंदगी आपको उलझी हुई सी लगने लगती है. शब्दों से भरे अटपटे सवालों का जंजाल ऐसा उलझता है की आप उससे खुद को निकाल भी नहीं पाते और फंसते चले जाते हैं. अक्सर ऐसा समय भी आता है जिसमें आपको वो सब याद आने लगता है जिसके लिए आपने खुद से बढ़कर अच्छा करना चाहा हो और उस अच्छाई से बढ़कर आपको बुराई मिलने लगती हो. शायद ये सबके साथ होता है. समय एक सा नहीं होता जनाब... ये कभी भूल कर भी नही भूलियेगा. इंतजार कीजिये उस समय का जब आप अपनी काबिलियत के जरिये उस सख्श को करारा जवाब देंगे, सच कहूँ तो वही सही समय होता है अपनी सफलता को सेलिब्रेट करने का. यूं तो जिंदगी एक कप कॉफी की तरह भी होती है. जल्द बजी में पी तो मुंह जल जात...

आज हुआ एक अजब सा अहसास...

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जब भी हम कभी अहसास की बात करते हैं तो सामने वाले के मन में यही आता है की शायद लड़की प्यार में डूब चुकी है. लेकिन अहसास सिर्फ प्यार या अपनेपन का ही नहीं होता है. खुद के लिए कुछ कर गुजरने का वो जूनून, खुद के  आत्मसम्मान के लिए सामने वाले से लड़ जाने का जूनून.. और उस जूनून में भी एक अहसास ही तो होता है. जिसके बारे में सिर्फ मैं ही नहीं ना जाने कितने लोग सोचते होंगे. हाँ जब बात लड़कियों के आत्मसम्मान पर आ जाती है तो आपका गुस्सा और उसके लिए सामने वाले से लड़ जाना जायज है. चाहे जमाना कितना ही बूरा भला समझ ले, लेकिन बूरा-भला समझने वाला वही समाज आपकी अस्मत छीन जाने पर बिलकुल भी आगे नहीं आएगा हाँ आगे आगे जब आप इस दुनिया से अलविदा कह चुकी होंगी. तब यही समाज आपके लिए एक मोमबत्ती लेकर श्रधान्जली देगा. हाल ही में एक छोटे से सात साल के बच्चे के साथ जो भी हुआ उससे आप वाकिफ है. दिल में अपने बच्चे की मौत का भार लिए उस माँ को भी वो अजब सा अहसास है जिसके लिए वो लड़ रही है अपने बच्चे को न्याय दिलाने के लिए वो खुद को होश में रखे हुए है. हमारे जीवन में अहसास की जगह कम नहीं है. ये अहसास ही तो ह...

'अब 'राम'' के नाम से तौबा' बदल लो अपने बच्चे का नाम

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'राम' नाम से शालीनता और सभ्यता झलकती है. और तो और एक समय ऐसा भी था की राम के नाम पर लोग आंख मूँद कर विश्वास कर लिया करते थे. लेकिन अब समय बदल गया है जनाब, समय बदला तो बदला लेकिन ऐसा भी क्या बदला की राम के नाम को पैरों तले ही कुचल डाला. अरे निर्दयी राम के नाम का सम्मान ना सही लेकिन उस कोख का सम्मान तो कर लेता जिसने तुझे इस दुनिया से रूबरू करवाया, वो मां बाद में बनी पहले तो एक औरत ही थी. तूने ऐसा इतिहास रचा जिसे आने वाली 70 पीढियां याद रखेंगी. कोख वही है बदला है तो चेरा जिसकी असमत तू लूटता चला आया है. अब सुनिए असल सच्चाई और 'राम' के नाम से ही तौबा कर लो. और तो और जिसने भी अपने बच्चे का नाम ये सोचकर भगवान राम पर रखा होगा. वो तो इसे अपनी जिन्दगी की सबसे बड़ी गलती समझ रहे होंगे. उन्हें भी यही लग रहा होगा की कहीं उनका राम भी बलात्कारी राम न बन जाए. नज़र डालें भी तो किसमें ? बाबा आसाराम बापू पर.. जिक्र करना तो नहीं चाहती क्योंकि जिक्र करने मात्र से मन गंदा हो जाता है. उनको भी बुढ़ापे में ऐसे सहारे की तलाश थी जो उन्हें उनकी जवानी याद दिला दे.. धिक्कार है भाई... आइये जरा ब...

बहुत दिनों बाद बस यूं ही..

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नुमाइश और दिखावे से भरी इस दुनिया में दो पल खुद के लिए और अपनों के लिए निकालना तो मानों इतना मुश्किल सा हो जाता है जिसकी हमें बाद में वैल्यू पता चलती है. आज मैं बहुत दिनों के बाद अपना नया ब्लॉग अपनी कुछ कल्पनाओं के साथ यूँ ही लिख रही हूँ. जिन्दगी की ऐसी सच्चाई जिससे हमसब भागते हैं पर कुछ ऐसा भी है जिसके लिए हमे थोड़े ठहराव की भी जरूरत होती है. वो ठहराव आपके लिए जरूरी है. हमेशा ऐसा ही लगता है की हम ही बेहतर हैं और हमसे बेहतर तो दुनिया में कोई दूजा है ही नहीं. ये सोच हमें और भी पीछे ले जाती है जिसका अंदाजा हमें तब होता है जब सामने वाला हमसे कहीं आगे निकल जाता है. जिन ऊँचाइयों को वो छू रहा होता है दरअसल कभी हम भी वही सपने अपनी ऊँची उड़ानों में लेकर उड़ा करते थे, लेकिन सिर्फ उड़ानों के सपने पंखों में रखकर कोई भला कितनी दूर तक जाएगा. उम्र का वो भी पड़ाव आता है जनाब जो हम कभी भूल जाया करते हैं. जब भी मैं कहीं बाहर घूमने जाती हूं तो बाहरी चमक के अलावा भी मेरी नज़रे किसी और चीज़ पर ही टिक जाती है. वो भूखी होती है, वो बिना कपड़ों के भी होती है और तो कभी कभी वो इतनी बेबस और लाचार होती है क...

और हार गई वो नन्हीं सी जान..

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कलेजा फट जाता है जब अपने बच्चे को छोटी सी खरोच भी आ जाती है तो. सोचिये अगर किसी और के बच्चों को पैरों से रौंदकर जान से मार दे. हालाँकि बच्चा इंसानी ना होकर कुत्ते का था. अब क्या जान तो जान होती है न, बच्चा भी तो बच्चा होता है. दरिंदगी आप ने देखि या नही मालूम नहीं और अगर देख लेते न वो वाला वीडियो तो कसम से गश्त खा कर जमीन पर ही ढेर हो जाते आप. देखो भैया हम रहते हैं भारत में. भारत एक ऐसा देश जिसमें मान मर्यादा में रहना तहजीब से उठाना बैठना सब आना चाहिए. तो भईया जब इस देश में लडकी को पेट में ही मारने से पहले, शादी के बाद दहेज़ के लिए जला देने से, और तो और अगर अपनी मर्जी से शादी करने का मन हो तो बदनामी के डर से जहर देकर मार देने से पहले एक बार भी नहीं सोचते, फिर तो वो एक छोटा सा पिल्ला है. जरा सोचिये आगे लिखेंकी जरूरत नहीं.. loading...

आधा है इश्क, आधा हो जाएगा..

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नई जिन्दगी, और उसके बाद नए लोगों के बीच समय बिताना, सच में कितना अजीब होता है वो एहसास, जहाँ कहने को रिश्ते अपने होते हैं लेकिन अजब सी झिझक आ ही जाती है, तब दिमाग में ये बात आती है की सच में अपना घर अपना ही होता है जहाँ खुली चिड़िया की तरह कहीं भी उड़ सकती थी किसी से भी बिना झिझके कुछ भी बोल देती थी. मन को नए माहौल में ढलने को समय लगता है लेकिन अपनों की जगह अपने और उनके दिल  में बनाने में थोडा समय तो लग ही जाता है. हाँ याद है जब आप अपने परिवार के साथ मुझे देखने आए थे तो आपके परिवार वालों के कहने के पर आपने मेरे साथ दो मिनट का समय भी बिताया था,  न पहले कभी हम मिले थे और न ही पहले कभी हमने कोई बात की थी आपस में, हाँ याद आया आप तो मुझसे ज्यादा नर्वस भी थे , फिर सवालों का दौर कौन पहले शुरू करेगा हमने वो दो मिनट भी उसी ख़ामोशी में गवां दिया था. बस फिर क्या दोनों परिवार को रिश्ता पसंद आया और हो गई शादी तय, मुश्किल थमी नहीं थी अभी.. अभी तो बस आपको समझने की और जानने की कोशिश शुरू हो चुकी थी.  समय बीतता गया थोड़ी जान पहचान आपके घर वालों से हो गई थी लेकिन आपसे तो बिलकुल ...

'पापा' आप खास हो मेरे लिए..

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आपके होने से खुद को महफूज़ समझती हूँ, रात में देरी से घर आने पर आप मेरे फर्स्ट ऑप्शन होते हैं की मैं सिर्फ आपको इन्फॉर्म करूं. आप ही हैं वो जो मेरी सारी डिमांड्स को पूरा करते हैं, आप मेरे पापा मुझे सबसे अच्छे से समझते हैं, हाँ माना की मां का अस्तित्व अलग है लेकिन आप भी तो खास हैं मेरे जीवन में. कहते हैं न की बेटियों के लिए उनके पापा उनके सुपर हीरो होते हैं. झूठ भी क्या है ये एकदम सही है. मेरे पापा मेरे लिए सुपर हीरो से कम थोड़ी न हैं. हाँ मान लिया की मैं थोड़ी जिद्दी हूँ लड़ भी जाती हूँ आपसे,  लेकिन आपका होना मानो मुझे दुनिया में किसी से भी डर ना हो. क्योंकि आप तो सुपर हीरो हो. और खास भी. आपका साथ आपका आशीर्वाद मेरे लिए उतना जरूरी है जितना की साँस लेना... तो 'लव यू माय सुपर हीरो, यू आर द बेस्ट'.. loading...

अपना काम खुद करो ना, बच्चे नहीं हो तुम अब...

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गुस्सा तो बहुत आता है तुम पर, जितने पैसे हैं न तुम्हारे पास उतनी ही छोटी सोच भी, अब देखो जब तुमको अपना होटल चलाना है, या जब तुमको किराने की दुकान खोलनी होती है, तब सोचते हो कम पैसे खर्च करने पड़े और मिल जाए ऐसा मजदूर जो दिन रात मरता रहे और काम करता रहे. तब दिमाग में घंटी बजती है न की किसी बच्चे को ही रख लें काम पर, जो घर परिवार से गरीब हो और तो और मजबूर भी हो. अरे.. रे..ये सोच किसी की जन्दगी बर्बाद कर देती है ये क्यों नही समझते तुम. ये वो नन्हें हाँथ हैं जो शायद तुम्हारे घर में भी होंगे, ये वो दबी हुई खिलखिलाहट है तो तुम्हारे घर में भी कहीं न कहीं गूंजती ही होगी. अपना बच्चा फूल सा नाजुक और उस मजदुर का मजबूर बच्चा काम करने की मशीन. नियम कायदे तुमको पता नहीं ये वही देश है जहाँ नियम बनते तो हैं लेकिन कभी भी ना पूरा करने के लिए और कभी भी तोड़ देने के लिए. शर्म करो क्योंकि शर्म करना बाकि है तुम में अभी, जब भी कभी कहीं बहार जाते हो तो बच्चे भीख मांगते नज़र तो आ ही जाते होंगे, और ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है अक्सर किसी गंदगी के ढेर से गंदगी बीनते भी आराम से नज़र आ जाते होंगे. हम आर...

फोन वाला लव...

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कब से फोन पे फोन कर रहा हूँ तुम हो की फोन उठा ही नही रही थी.. पता है ना मैं तुमको कितना मिस कर रहा था? खैर ये सब छोड़ो और बताओ की तुम क्या कर रही थी और कैसी हो.. अपनी एक पिक तो भेजो वाशरूम में जाकर, देखूं तो जरा की तुमने आज क्या पहन रखा है और कैसी लग रही हो... मतलब हद्द ही कर दी है भाईसाहब.. फोन वाले लव का जिसे नाम दे रहे हैं हम अक्सर कपल एकदूसरे से ऐसी बेतुकी डिमांड करते है जिसके बारे में सोच कर भी शर्म आ जाए, अरे हाल चाल तो बाद की बात है पहले उनको कपड़े दिखाओ, ज्यादा ढके ना हों बस थोडा टॉप को उठा दो और बाहें गिरा दो..और प्यार में पागल लोग तो सब कुछ कर गुजरने के लिए तुरंत तैयार हो जाते हैं. ये जो फोन वाला लव होता है ना, कुछ अजब सा ही होता है, ना तो दिल काम करता है और न ही दिमाग, अब आप बताओ अगर मिल नही सकते तो बेचारे क्या करेंगे एक रास्ता हैं फोन का, कई तो फोन में ही सपनों की शादी रचा लेते हैं और बस फिर क्या शुरू हो जाता है फोन में ही वैवाहिक जीवन. अरे रुको भाई और देखो, अपना दिमाग खोलो सच्चाई पता है ना की आज कल टेक्नोलॉजी कितनी अडवांस हो चुकी है. आप जो प्यार में डूब कर फोटो भे...

यहां थूंक दिया ना, तो बता रही हूं पीट दूंगी...

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गुस्सा तो बहुत आता है..जब तुम यूँ चलती कार नहीं तो बस की खिड़की से अपना मुंह निकाल कर थूंकते हो,  तब मन में आता है की तुमको पीट दूँ,. ये सोच किसी पतिंगे की तरह दिल में आती है, फिर दिमाग पर, और अंदर ही अंदर जुबान पर भी आ जाती है लेकिन किस्मत तुम्हारी अच्छी है की ये जुबान से बाहर नही आ पाती. विश्वास मानो और मोदी जी की बात भी.  काहे अपने मुंह की तरह सड़क गंदी करने में तुले हुए हो.. हाँ बात अलग है मुंह जैसा भी है तुम्हारा है लेकीन सड़क का क्या??  वो तो हम सबकी है न.. रहने दो और जाने दो तुम्हारे बस का नहीं, अपनी लाइफ में चाहते हो की कोई हूर की परी आए, लेकिन जनाब हूर की परी चाहिए तो अपनी शक्ल को एक बार शीशे में देख लो और मुंह खोलकर अपने दांतों को भी देखना मत भूलना. तब कोलगेट, पेप्सोडेंट, और वो कौन सा टूथ पेस्ट होता है जो दांतों को सिर्फ सात दिन में चमचमाते मोती जैसा बना देते हैं?? नहीं तब कुछ भी काम नहीं आएगा. मसाला न सिर्फ तुम्हारे दांतों को गंदा करता है बल्कि दूसरों के आगे तुम्हारे चरित्र की भी पूरी तरह से वाट लगा देते है, अब ये मत सोचना की एक कुल्ला करके तुम जो खिलखिला...

अपनी अल्हड़ जवानी सम्भालिये जनाब, जो राह चलते मचल जाती है..

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माना जनाब आप अब 18 के पूरे हो चुके हैं, और आपके पंखों ने तो 18 से पहले ही उड़ान भरनी शुरू कर दिए थे, लेकिन रुकिए और जरा सम्भालिये, आप खुद से नहीं अपनी अल्हड़ जवानी से जो आपको कुछ देर के मज़े के बदले में पूरी जिन्दगी भर की परेशानी में डाल सकती है. जब रस्ते में चलते हो बगल से निकली लड़की को आगे से पीछे तक और उपर से नीचे तक किसी एक्सरे मशीन की तरह ट्रैश कर जाते हो, तब दिल में सुकून तो बहुत मिलता होगा.. है ना, फिर क्या चल देते हैं अपने रस्ते पर, अब भाई जवान हो उपर से भगवान ने आंखे तो दी हैं उसका इस्तेमाल भी नही करोगे क्या, अगर नहीं किया तो मर्द कहां कहलाओगे..? मर्द कहलाना और लड़कियों को मर्यादा का पाठ पढ़ाना, कौन से स्कूल के मास्टर ने सिखा दिया, क्योंकि घर में तो ऐसा कोई भी नहीं सिखाता, ये छोड़ो और ये बताओ बीच राह में चलते किसी लड़की पर फब्दियाँ कसना कौन से एक्स्ट्रा क्लास में सीख लिया. असल में टैलेंटेड हो बिना किसी के सिखाए, बिना किसी के पढाए तुम तो कांड पे कांड ही किए जा रहे हो. लड़कियां 18 की नहीं होती क्या?? लड़कियों के पास ऑंखें नहीं होती क्या... क्या फर्क है..?? फर्क तो बहूत है.. ब...

डिस्टेंस रिलेशनशिप, 'डिस्टेंस' का मतलब समझते हैं ना आप..

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'डिस्टेंस' मतलब दूरी, और रिलेशनशिप का मतलब तो आप भी समझते हैं जनाब, अब रिलेशनशिप का मतलब सबके लिए अलग अलग होता है लेकिन ये जो 'डिस्टेंस रिलेशनशिप' नाम की ये चिड़िया कुछ ही लोगों के गले पड़ी होगी, हालांकि समय बदल चुका है, और साथ में बदल चुका इस रिलेशनशिप का मतलब भी.  पहले की बात थी जब अक्सर लोगों को ट्रेन में या फिर बस में सफ़र के दौरान किसी से प्यार हो जाया करता था. तब बस फोन से बात कर के ही अपने मन को तसल्ली दे दिया करते थे.. अब तो बात ही कुछ और हो गई है, वीडियो कालिंग ने तो डिस्टेंस रिलेशनशिप नाम की चिड़िया का सिर काट दिया. मतलब कहने का है की डिस्टेंस मानो फुर्र हो गया हो. कहते हैं न रिश्ते जितने करीब होते हैं, उनके टूटने की उम्मीद भी उतनी ही होती है. तो मैंने भी यूँ ही कहीं पढ़ लिया था की वो रिश्ते ज्यादा टिकते हैं जिनमें थोड़ी दूरी होती है क्या सच में इसमें सच्चाई है..?? दूर रहकर एक दुसरे की फिकर हर समय मन को घेरे रहती है, जब भी मन उदास होता है तो मानो किसी की कमी खल रही हो. आपके आस पास लाखों की भीड़ होती है फिर भी आप खुद को अकेले महसूस करते हैं.  डिस्टेंस का...

ऐसे सवाल जिनके जवाब नहीं...

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अकसर हम अपनी जिन्दगी में कुछ ऐसे सवालों के जवाब तलाश करते हैं जिनके जवाब हमें खुद मालूम होते हैं. तलाशी इसलिए चलती है जिससे हमें ये लगे की जो जवाब हमारे पास है शायद कहीं उससे कुछ अलग जवाब मिल जाए, हम भी कितने अजीब होते हैं, है ना. खैर ये लाइफ भी बहूत ज्यादा अजीब सी होती है, इसे अच्छे से और बिंदास तरीके से स्पेंड करने के लिए हम किसी के साथ को तलाश करते हैं, जिसके सामने हम अपनी सारी फीलिंग्स और वो सारी बातें जिनको हम किसी से भी शेयर नहीं करते वो सब पिटारा सिर्फ एक इंसान के सामने खोल के रख देना चाहते हैं. और तो और भाईसाहब हम जिनके सामने खुली किताब बन जाना चाहते हैं इसके बाद  जब वो साथ मिलता है तो मानो खुद के पांव जमीन पर ही ना पड़ रहे हों. इस गुड टाइम के शुरू होने के साथ ना जाने ये बुद्धू दिमाग क्या क्या सपने पिरोने लगता है, जैसे जैसे समय बीतता है लाइफ की असल सच्चाई भी आँखों के सामने मंडराने लगती है. ये वो सच्चाई है जिसके बारे में हम जानना ही नही चाहते, सबकी लाइफ में सब कुछ परफेक्ट हो ऐसा तो बिलकुल भी जरूरी नहीं है. तब अहसास होता है की अपनों का साथ जिन्दगी में कितना जरूरी होता ह...

'माँ'

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माँ जितना छोटा सा शब्द, लेकिन पूरी दुनिया ही समाई है, मौत के रास्ते बहूत होते हैं लेकिन जन्म के सिर्फ एक वो है मां, जब हम छोटे हुआ करते थे माँ की कोई भी बात नहीं मानते थे, मानों जिसके लिए वो मना करती थीं हम जानबूझ कर वही काम किआ करते थे, और फिर बदले में मिलती थी मां की डांट, लेकिन अब जैसे जैसे हम बड़े हुए समय गुजरता गया और मेरा मेरी माँ के साथ रिश्ता भी गहराता चला गया.. आज मैं और मेरी मां के बीच ऐसा रिश्ता बन चुका है जैसे हम कोई सहेली हों, मैं तो दिनभर से रात तक की सारी खबर माँ के पीछे पीछे चलके सुनती हूँ. फिर मां की भी बारी आती है और हम दोनों ही एक दुसरे में सारी दुनिया ढूंढ लेते हैं, मैं अपनी माँ के पास रहती हूँ हाँ थोड़े बहूत झगड़े होते हैं और विवाद भी कम नहीं होते हमारे बीच लेकिन सच में माँ आप मेरी जिन्दगी में मेरे लिए बेहद खास हो,,  

तो इस दुनिया के बारे में जानते हैं क्या आप.. ??

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और यहाँ से शुरु हुई वो कहानी जिसको जानने को जितना आप उत्सुक हैं यकीन मानिये उतना ही मैं भी थी, क्योंकि दिमाग की खिड़की में सिर्फ एक ही सवाल बार बार किसी घड़ी के सुई के तरह टिक-टिक कर रहा था की आखिर जिस दुनिया के बारे में जानने के लिए मैं इतनी उत्सुक हूँ वो दुनिया है भी या नही, वो दुनिया है सपनों की दुनिया, अभी अच्छे तो कभी बुरे, कभी किसी आसमान में रंगबिरंगी पतंग की तरह खुद को उड़ता देखना तो कभी सागर की गहराइयों से भी गहराई में उतर जाना, क्या आप जानते हैं इस दुनिया के बारे में?? बचपन में जब भी हमारे घर की लाइट मतलब बिजली कट जाया करती थी तब मैं और मुझसे बड़े मेरे भाई-बहन दादी की तख्त को घेर लिया करते थे, उस समय न तो कोई मोबाइल फोन हुआ करता था और न ही टाइमपास करने के दूसरे साधन, छोटे थे तो घर में काम कराने का भी इतना इंटरेस्ट नहीं होता था, इंटरेस्ट तो मोहल्ले में सारे बच्चों को इख्ठा करके छुपन- छुपाई या पौसम-पाई में सारा वक्त यूँ ही गुजार दिया करते थे. तो जब भी दादी के पास बैठती थी तो उनकी काल्पनिक कहानियों और बातों में सिर्फ एक ही बात होती थी की जो सपने हम देखते हैं उनकी असल में वास्तविकत...

'निर्भया' तुम्हारे गुनाहगारों को नहीं मिली माफ़ी...

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और इस तरह जब सुप्रीमकोर्ट का वो कमरा तालियों से गूंज उठा.. तुम सुन रही हो न निर्भया ?? तुम्हारी आँखों में आंसू थे, तुम्हारी आवाज में वो दर्द था जिसकी एक आवाज ही सबको झकझोर कर रख देने के लिए काफी थी, तुम्हारे लिए तुम्हारे गुनाहगारों को सजा दिलाने के लिए वो सब आगे आए जिनके लिए बेटी कुछ भी मायने नहीं रखती थी, याद है वो रात, कोई कैसे भूल सकता है उस हैवानियत को, कोई कैसे भूल सकता है उस वास्तविकता को जिससे तुम जूझी हो, न सिर्फ तुम तुम्हारे माता-पिता भी, लेकिन यकीन मानो आज वो खुश होंगे उस फैसले से जो आज से 5 साल पहले ही हो जाना चाहिए था. देर में ख़ुशी मिली और तुम्हे इन्साफ भी, लोगों को इस फैसले से थोडा तो भरोसा होगा. लेकिन 16 दिसम्बर 2012 से आज के दिन न जाने कितनी बेकसूर लड़कियों ने और मासूमों ने इस गंदी बर्बरता को झेला है. तुमको पता है ये वही लोग हैं जो आज तुम्हारा साथ दे रहे थे जो कल तुम्हारे ही चरित्र पर सवाल उठाते थे, खैर तुमको इन्साफ मिला. और तुम्हारे माता-पिता के लिए ये पल खास है. loading...

ये कनपुरिया बारात है जनाब, टिफिन बिना काम नहीं चलेगा

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भाई कानपुर को क्या कहा जाए. जितनी तारीफ करो उतनी कम. अब ज्यादा सोचने की जरूरत नही आपको क्योंकि आपको यही लग रहा होगा की ये कोई नया ट्रेंड है क्या जो अब टिफिन भी ले जाना पड़ेगा? अरे कानपुरियों ऐसा कोई भी नया ट्रेंड नही हैं. हम तो बात कर हैं बारातों की जो कहीं भी जाम की वजह बन बैठती हैं. अब भाई बारात है तो उसमे लोग डांस में इस तरह खो जाते हैं की क्या कहा जाए. भाई क्यों न खोएं.. इसी दिन का इन्तेजार जो होता है. बस उनका ये इन्तेजार इस कदर कानपुरियों के उपर भारी पड़ जाता है की उनको घंटो जाम में फंसना पड़ता है. जब घंटो जाम में फंसना हो तो सबसे अच्छी नसीहत यही होगी की भईया कानपुरियों अपना खाना साथ ही रखें. न जाने कब जरूरत पड़ जाए. शहर में शादियों की तो भरमार हो गई है. और इन शादियों को लेकर यातायात इस तरह प्रभावित है की किसी अधिकारी का ध्यान तक नहीं जाता. कनपुरिये बेचारे 2 कदम चलते हैं की फिर जाम लग जाता हैं. जब भी बारात निकलनी होती है तो दूसरी तरफ oneway तो twoway में बदल जाता है. अब जाम की क्या बात की जाए जाम तो वैसे भी आम है और शादियों के सीजन में जाम को भी खुमार चढ़ जाता है.